जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 2900 किलो विस्फोटक, राइफल और टाइमर के साथ व्हाइट कॉलर आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया। तीन डॉक्टर गिरफ्तार।

🚨 जम्मू-कश्मीर से दिल्ली तक फैला व्हाइट कॉलर आतंकी नेटवर्क
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक बड़े आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ किया है जिसने कश्मीर से लेकर दिल्ली तक दहशत फैलाने की साजिश रच रखी थी। इस मॉड्यूल में शामिल थे — तीन डॉक्टर, एक मौलवी, और चार अन्य सहयोगी, जो अपने पेशेवर और धार्मिक पहचान के पीछे आतंक फैलाने की योजना बना रहे थे।
इस मॉड्यूल का नेटवर्क जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और अंसार गजवत उल हिंद (AGuH) जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ा बताया जा रहा है। पुलिस ने अब तक सात आरोपियों को गिरफ्तार किया है और अन्य की तलाश जारी है।
💼 व्हाइट कॉलर आतंकी: डॉक्टरों की आड़ में चल रहा था नेटवर्क
पुलिस की जांच में सामने आया कि यह आतंकी नेटवर्क कोई सामान्य गिरोह नहीं था — बल्कि उच्च शिक्षित डॉक्टरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की आड़ में चल रहा था।
- इनमें से एक डॉक्टर मुजम्मिल अहमद गनई उर्फ मुसैब (पुलवामा निवासी) फरीदाबाद के अल-फलाह अस्पताल में कार्यरत था।
- दूसरा डॉक्टर आदिल अहमद राथर सहारनपुर के एक निजी अस्पताल में काम कर रहा था।
- तीसरी आरोपी महिला डॉक्टर लखनऊ की रहने वाली बताई जा रही है, जो हथियारों के परिवहन में मदद कर रही थी।
इनकी गिरफ्तारी से यह स्पष्ट होता है कि आतंकवाद अब नई शक्ल — “व्हाइट कॉलर आतंकवाद” — ले चुका है, जो कलम के पीछे छिपी बंदूक का प्रतीक बन चुका है। 🧠💀
💣 2900 किलो विस्फोटक और हथियार बरामद — बड़ा हमला टला
जांच एजेंसियों को अब तक मिले सबूतों से पता चला है कि आतंकियों ने 2900 किलो विस्फोटक पदार्थ, 20 टाइमर, दो पिस्तौल, एक AK-56 राइफल, और एक क्रिंकोव राइफल इकट्ठा कर रखे थे।
🔎 इन सामग्रियों में से 350 किलो अमोनियम नाइट्रेट और हथियार फरीदाबाद के धौज गांव में डॉ. मुजम्मिल के किराए के मकान से मिले।
इस भारी मात्रा में विस्फोटक का मतलब साफ है — दिल्ली और अन्य शहरों में एक बड़े धमाके की योजना बनाई जा रही थी। अगर यह समय रहते न पकड़े जाते, तो देश को एक और 26/11 जैसी त्रासदी देखने को मिल सकती थी।
🕵️♂️ कैसे खुला आतंकी मॉड्यूल का राज़?
पूरा मामला तब उजागर हुआ जब पुलिस ने श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टर चिपकाने वाले आरोपियों को पकड़ा।
इनसे पूछताछ और CCTV फुटेज की मदद से जांच टीम डॉ. आदिल और डॉ. मुजम्मिल तक पहुंची।
इसके बाद फरीदाबाद और सहारनपुर में छापेमारी कर पूरे नेटवर्क को धीरे-धीरे पकड़ा गया।
जांच में पाया गया कि ये सभी लोग सोशल मीडिया और इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स के जरिए पाकिस्तान और पीओके (PoK) स्थित हैंडलरों से संपर्क में थे।
📱 आतंकी प्रचार और फंडिंग का नया तरीका
जांच में यह भी सामने आया कि यह मॉड्यूल न केवल आतंकी गतिविधियों की योजना बना रहा था बल्कि —
- सोशल मीडिया पर आतंकवाद का महिमामंडन कर रहा था।
- नए युवाओं की भर्ती और उन्हें “जिहाद” के नाम पर ब्रेनवॉश कर रहा था।
- सामाजिक व धर्मार्थ संस्थाओं की आड़ में फंडिंग जुटा रहा था।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस नेटवर्क ने “धार्मिक चैरिटी” के नाम पर फंड इकट्ठा किया, जिसे बाद में IED और हथियार खरीदने में इस्तेमाल किया गया।
🧩 सामान्य दिखने वाले चेहरों के पीछे छिपा आतंक
दिलचस्प बात यह है कि इस मॉड्यूल के अधिकांश सदस्य पहले कभी किसी आतंकी या अलगाववादी गतिविधि में शामिल नहीं रहे।
उनका बैकग्राउंड एकदम सामान्य और पेशेवर था — अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर, मौलवी, और समाजसेवी।
लेकिन जांच में पता चला कि इन सबकी ऑनलाइन गतिविधियां, गुप्त मीटिंग्स और डिजिटल ट्रांजेक्शन एक बड़े आतंकी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहे थे।
यह दिखाता है कि आज का आतंकवाद सिर्फ बंदूक से नहीं, बल्कि शिक्षा, तकनीक और इंटरनेट की आड़ में भी फैलाया जा रहा है — यानी “व्हाइट कॉलर टेररिज़्म”। 🎓💣
⚠️ देशभर में हाई अलर्ट, दिल्ली में सुरक्षा बढ़ाई गई
आतंकी मॉड्यूल के भंडाफोड़ के बाद, दिल्ली, यूपी और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
एनआईए (NIA) और आईबी (Intelligence Bureau) इस मामले की गहराई से जांच कर रही हैं।
सुरक्षा एजेंसियां अब यह पता लगाने में जुटी हैं कि क्या यह मॉड्यूल हालिया लालकिला ब्लास्ट या अन्य घटनाओं से जुड़ा हुआ है।
🧠 विश्लेषण: आतंकवाद का बदलता चेहरा और भारत की चुनौती
भारत में अब आतंकवाद सिर्फ सरहद पार से आने वाली गोलियों तक सीमित नहीं रहा।
यह अब व्हाइट कॉलर प्रोफेशनल्स की आड़ में पनपने लगा है — जो शिक्षा, अस्पतालों और सोशल प्लेटफॉर्म्स के जरिए अपने नेटवर्क फैला रहे हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला आतंकवाद की नई परिभाषा गढ़ता है —
जहां “सूट-बूट में छिपे आतंकी” अपने ज्ञान और संसाधनों का इस्तेमाल विनाश के लिए करते हैं।
यह सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक नई चुनौती है, क्योंकि ऐसे नेटवर्क को पकड़ने के लिए पारंपरिक तरीकों से अधिक डिजिटल और इंटेलिजेंस-आधारित जांच की जरूरत है।
🧾 निष्कर्ष: समय रहते टली बड़ी साजिश
जम्मू-कश्मीर पुलिस और खुफिया एजेंसियों की तत्परता ने एक भयानक आतंकी साजिश को नाकाम कर दिया।
अगर यह मॉड्यूल कुछ दिन और सक्रिय रहता, तो देश एक भयंकर विस्फोट श्रृंखला का सामना कर सकता था।
अब सवाल यह है कि —
क्या हमारे अस्पतालों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थाओं के भीतर भी ऐसे नेटवर्क छिपे हो सकते हैं?
यह केस देश को जागरूक और सतर्क रहने का संदेश देता है।